चीन का मंगल ग्रह का मिशन तियानवेन-1 इस पृथ्वी से करीब 10 करोड़ किलोमीटर दूर पहुंच चुका है। यहां की अंतरिक्ष एजेंसी सीएनएसए ने बताया कि वह सामान्य काम कर रहा है। खास बात यह है कि चीन का पिछला मंगल मिशन विफल रहा था। वहीं भारत ऐसा पहला देश है जिसने पहले ही प्रयास में सफलता से मंगल को मिशन अंजाम दिया।
भारत के अलावा अब तक केवल अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ की मंगल के लिए सफल मिशन भेज सके हैं। भारत एशिया का अभी पहला देश है जिसने यह उपलब्धि हासिल की भारत का मंगलयान 2014 में मंगल ग्रह का चक्कर लगा चुका है। चीन ने इससे पहले 2011 में मंगल ग्रह पर यान यिंगुओ-1 भेजा था, लेकिन यह मिशन असफल रहा था।
मिशन सफल होने पर आएगा भारत की बराबरी पर
इस बार उसका ध्यान तियानवेन-1 पर है, जो सोमवार तक अंतरिक्ष में 144 दिन गुजार चुका है और 36 करोड़ किलोमीटर की यात्रा की है। मंगल ग्रह पर पहुंचने के लिए अभी इसे 1.2 करोड़ किलोमीटर की दूरी और तय करनी है। इसके मंगल ग्रह के निकट पहुंचने की प्रक्रिया अगले वर्ष फरवरी के मध्य शुरू होगी और यहां जाकर यह यान ग्रह की कई परिक्रमा करेगा। इसके बाद यह मंगल की धरती पर उतरेगा और फिर रोवर के जरिए भ्रमण भी करेगा। इसमें यहां की मिट्टी, भू संरचना, पर्यावरण का अध्ययन में शामिल है।
चीन का मंगल ग्रह का मिशन तियानवेन-1 इस पृथ्वी से करीब 10 करोड़ किलोमीटर दूर पहुंच चुका है। यहां की अंतरिक्ष एजेंसी सीएनएसए ने बताया कि वह सामान्य काम कर रहा है। खास बात यह है कि चीन का पिछला मंगल मिशन विफल रहा था। वहीं भारत ऐसा पहला देश है जिसने पहले ही प्रयास में सफलता से मंगल को मिशन अंजाम दिया।
भारत के अलावा अब तक केवल अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ की मंगल के लिए सफल मिशन भेज सके हैं। भारत एशिया का अभी पहला देश है जिसने यह उपलब्धि हासिल की भारत का मंगलयान 2014 में मंगल ग्रह का चक्कर लगा चुका है। चीन ने इससे पहले 2011 में मंगल ग्रह पर यान यिंगुओ-1 भेजा था, लेकिन यह मिशन असफल रहा था।
मिशन सफल होने पर आएगा भारत की बराबरी पर
इस बार उसका ध्यान तियानवेन-1 पर है, जो सोमवार तक अंतरिक्ष में 144 दिन गुजार चुका है और 36 करोड़ किलोमीटर की यात्रा की है। मंगल ग्रह पर पहुंचने के लिए अभी इसे 1.2 करोड़ किलोमीटर की दूरी और तय करनी है। इसके मंगल ग्रह के निकट पहुंचने की प्रक्रिया अगले वर्ष फरवरी के मध्य शुरू होगी और यहां जाकर यह यान ग्रह की कई परिक्रमा करेगा। इसके बाद यह मंगल की धरती पर उतरेगा और फिर रोवर के जरिए भ्रमण भी करेगा। इसमें यहां की मिट्टी, भू संरचना, पर्यावरण का अध्ययन में शामिल है।