कोरोना वैक्सीन पर अस्थायी रूप से पेटेंट हटाने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले का दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में स्वागत किया गया है, लेकिन चीनी विशेषज्ञों ने इस निर्णय को महज 'जुबानी सेवा' करार दिया। वहीं ईयू ने इस पर नाराजगी प्रकट की है।
गुरुवार रात तक इस बात के संकेत मिलने लगे कि चीन की इस आलोचना में दम है। बाइडन प्रशासन के फैसले पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। हालांकि यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उरसुला वॉन डेर लियेन ने कहा कि यूरोपियन यूनियन इस बारे में खुली बहस के लिए तैयार है, लेकिन जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस फैसले का दो टूक विरोध कर दिया है।
चीन के सरकार समर्थक अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक इन विशेषज्ञों ने कहा कि अमेरिकी सरकार ने दुनिया में अपनी खराब हुई छवि को सुधारने के लिए ये फैसला किया है, लेकिन इससे असल में कुछ नहीं बदलेगा। उन्होंने कहा कि पेटेंट हटाने के लिए असल में जिन प्रशासनिक और कानूनी कदमों की जरूरत है, उसे लागू करने की क्षमता अमेरिकी प्रशासन में नहीं है।
डब्ल्यूटीओ में फैसले आम सहमति से होते हैं
बाइडन प्रशासन में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट हटाने के भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव का समर्थन करने का एलान किया है। लेकिन डब्ल्यूटीओ की प्रक्रिया के मुताबिक वहां फैसले आम सहमति से होते हैं। कोई एक देश भी किसी प्रस्ताव का विरोध कर उस पर अमल रोक सकता है।
जर्मनी करेगा पेटेंट हटाने का विरोध
अब ये लगभग साफ है कि जर्मनी पेटेंट हटाने के प्रस्ताव का विरोध करेगा। जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा- ‘कोरोना वैक्सीन पर से पेटेंट संरक्षण हटाने के अमेरिकी सुझाव का कुल वैक्सीन उत्पादन के लिए अहम परिणाम होंगे। वैक्सीन उत्पादन में सीमा का कारण उत्पादन क्षमता में कमी और उच्च गुणवत्ता का पालन है, ना कि पेटेंट। बौद्धिक संपदा का संरक्षण आविष्कार का स्रोत है और इसे भविष्य में भी बना रहना चाहिए।’
ईयू के राजनयिकों ने कहा है कि बाइडन प्रशासन ने ये फैसला लेकर ईयू को बड़ी दुविधा में डाल दिया है। अगर ईयू देश खुल कर इस फैसले का विरोध करते हैं, तो उनकी छवि खराब होगी। उससे यह माना जाएगा कि दवा कंपनियों के मुनाफे की रक्षा के लिए वे मानवता के खिलाफ रुख ले रहे हैं। इन राजनयिकों के मुताबिक बाइडन प्रशासन भी बिना अपने यूरोपीय सहयोगियों से राय-मशविरा किए कारोबारी मामलों में अहम फैसला ले रहा है। जबकि वैक्सीन पेटेंट हटाने सहित उसके कई फैसले ईयू के आर्थिक हितों के खिलाफ हैं।
फ्रांस सरकार ने पहले कोरोना वैक्सीन पर से पेटेंट संरक्षण हटाने का समर्थन किया था। लेकिन बाइडन प्रशासन के फैसले से फ्रांस भी खुश नहीं है। फ्रांस के यूरोपीय मामलों के उप मंत्री क्लेमेंट बियों ने कहा-'यह बेहद राजनीतिक कदम है। हम ऐसा इसलिए मानते हैं, क्योंकि अभी तक अमेरिका ने वैक्सीन का कोई निर्यात नहीं किया है।'
यूरोपीय संसद में प्रगतिशील सांसदों का गुट बाइडन प्रशासन के फैसले से खुश है। बेल्जियम से निर्वाचित और यूरोपीय संसद में सोशलिस्ट गुट से जुड़ीं कैथलीन वॉन ब्रेंप्ट ने कहा कि बाइडन प्रशासन ने ईयू की नाकामियों को बेनकाब कर दिया है।
उन्होंने कहा- ‘मुझे याद है कि अब संकट शुरू हुआ, तब उरसुला वॉन डेर लियेन ने कहा था कि जब तक हर व्यक्ति सुरक्षित नहीं होगा, तब तक कोई सुरक्षित नहीं है। हम यूरोपीय लोग बाकी दुनिया के साथ खड़े हैं। लेकिन असल में ऐसा हमने नहीं किया।’
लेकिन ईयू के खफा राजनयिकों का कहना है कि पहले भी बाइडन प्रशासन ने ऐसे फैसले किए हैं, जिनकी वजह से ईयू खलनायक जैसा दिखा है। इनमें चीन के खिलाफ माहौल तेज करना भी शामिल है, जिससे ईयू और चीन के व्यापक निवेश समझौते के खिलाफ वातावरण बना।
इसी तरह रूस-जर्मनी के बीच गैस पाइपलाइन के सवाल पर भी अमेरिका मुखर रहा है। बड़ी कंपनियों और धनी लोगों पर टैक्स लगाने और कॉरपोरेट टैक्स की एक न्यूनतम अंतरराष्ट्रीय दर तय करने के मामले में भी बाइडन प्रशासन ने ईयू से बिना बात किए घोषणाएं कर दी हैं। इन सबसे बाइडन प्रशासन के प्रगतिशील होने की छवि बनी है, जबकि ईयू के लिए अपनी ऐसी छवि बनाए रखना मुश्किल हुआ है।
विस्तार
कोरोना वैक्सीन पर अस्थायी रूप से पेटेंट हटाने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले का दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में स्वागत किया गया है, लेकिन चीनी विशेषज्ञों ने इस निर्णय को महज 'जुबानी सेवा' करार दिया। वहीं ईयू ने इस पर नाराजगी प्रकट की है।
गुरुवार रात तक इस बात के संकेत मिलने लगे कि चीन की इस आलोचना में दम है। बाइडन प्रशासन के फैसले पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। हालांकि यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उरसुला वॉन डेर लियेन ने कहा कि यूरोपियन यूनियन इस बारे में खुली बहस के लिए तैयार है, लेकिन जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस फैसले का दो टूक विरोध कर दिया है।
चीन के सरकार समर्थक अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक इन विशेषज्ञों ने कहा कि अमेरिकी सरकार ने दुनिया में अपनी खराब हुई छवि को सुधारने के लिए ये फैसला किया है, लेकिन इससे असल में कुछ नहीं बदलेगा। उन्होंने कहा कि पेटेंट हटाने के लिए असल में जिन प्रशासनिक और कानूनी कदमों की जरूरत है, उसे लागू करने की क्षमता अमेरिकी प्रशासन में नहीं है।
डब्ल्यूटीओ में फैसले आम सहमति से होते हैं
बाइडन प्रशासन में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट हटाने के भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव का समर्थन करने का एलान किया है। लेकिन डब्ल्यूटीओ की प्रक्रिया के मुताबिक वहां फैसले आम सहमति से होते हैं। कोई एक देश भी किसी प्रस्ताव का विरोध कर उस पर अमल रोक सकता है।
जर्मनी करेगा पेटेंट हटाने का विरोध
अब ये लगभग साफ है कि जर्मनी पेटेंट हटाने के प्रस्ताव का विरोध करेगा। जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा- ‘कोरोना वैक्सीन पर से पेटेंट संरक्षण हटाने के अमेरिकी सुझाव का कुल वैक्सीन उत्पादन के लिए अहम परिणाम होंगे। वैक्सीन उत्पादन में सीमा का कारण उत्पादन क्षमता में कमी और उच्च गुणवत्ता का पालन है, ना कि पेटेंट। बौद्धिक संपदा का संरक्षण आविष्कार का स्रोत है और इसे भविष्य में भी बना रहना चाहिए।’
ईयू के राजनयिकों ने कहा है कि बाइडन प्रशासन ने ये फैसला लेकर ईयू को बड़ी दुविधा में डाल दिया है। अगर ईयू देश खुल कर इस फैसले का विरोध करते हैं, तो उनकी छवि खराब होगी। उससे यह माना जाएगा कि दवा कंपनियों के मुनाफे की रक्षा के लिए वे मानवता के खिलाफ रुख ले रहे हैं। इन राजनयिकों के मुताबिक बाइडन प्रशासन भी बिना अपने यूरोपीय सहयोगियों से राय-मशविरा किए कारोबारी मामलों में अहम फैसला ले रहा है। जबकि वैक्सीन पेटेंट हटाने सहित उसके कई फैसले ईयू के आर्थिक हितों के खिलाफ हैं।
फ्रांस सरकार ने पहले कोरोना वैक्सीन पर से पेटेंट संरक्षण हटाने का समर्थन किया था। लेकिन बाइडन प्रशासन के फैसले से फ्रांस भी खुश नहीं है। फ्रांस के यूरोपीय मामलों के उप मंत्री क्लेमेंट बियों ने कहा-'यह बेहद राजनीतिक कदम है। हम ऐसा इसलिए मानते हैं, क्योंकि अभी तक अमेरिका ने वैक्सीन का कोई निर्यात नहीं किया है।'
यूरोपीय संसद में प्रगतिशील सांसदों का गुट बाइडन प्रशासन के फैसले से खुश है। बेल्जियम से निर्वाचित और यूरोपीय संसद में सोशलिस्ट गुट से जुड़ीं कैथलीन वॉन ब्रेंप्ट ने कहा कि बाइडन प्रशासन ने ईयू की नाकामियों को बेनकाब कर दिया है।
उन्होंने कहा- ‘मुझे याद है कि अब संकट शुरू हुआ, तब उरसुला वॉन डेर लियेन ने कहा था कि जब तक हर व्यक्ति सुरक्षित नहीं होगा, तब तक कोई सुरक्षित नहीं है। हम यूरोपीय लोग बाकी दुनिया के साथ खड़े हैं। लेकिन असल में ऐसा हमने नहीं किया।’
लेकिन ईयू के खफा राजनयिकों का कहना है कि पहले भी बाइडन प्रशासन ने ऐसे फैसले किए हैं, जिनकी वजह से ईयू खलनायक जैसा दिखा है। इनमें चीन के खिलाफ माहौल तेज करना भी शामिल है, जिससे ईयू और चीन के व्यापक निवेश समझौते के खिलाफ वातावरण बना।
इसी तरह रूस-जर्मनी के बीच गैस पाइपलाइन के सवाल पर भी अमेरिका मुखर रहा है। बड़ी कंपनियों और धनी लोगों पर टैक्स लगाने और कॉरपोरेट टैक्स की एक न्यूनतम अंतरराष्ट्रीय दर तय करने के मामले में भी बाइडन प्रशासन ने ईयू से बिना बात किए घोषणाएं कर दी हैं। इन सबसे बाइडन प्रशासन के प्रगतिशील होने की छवि बनी है, जबकि ईयू के लिए अपनी ऐसी छवि बनाए रखना मुश्किल हुआ है।